भारत की कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2025: फसल, राज्य और नई दिशा
भारत एक कृषि प्रधान देश है — यहाँ की करीब 60 फीसदी आबादी सीधे या परोक्ष रूप से खेती-बाड़ी पर निर्भर करती है। लेकिन आज के दौर में सिर्फ खेती करना ही पर्याप्त नहीं; अब बात है कुशलता, तकनीक और उत्पादकता की। हाल ही में भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने “Statistical Report on Value of Output from Agriculture and Allied Sectors 2025” जारी की है, जिसमें साल 2011-12 से 2023-24 तक के आंकड़े शामिल हैं।
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| Farmer examining crop growth in green fields. |
यह रिपोर्ट भारत की खेती की हकीकत, प्रगति और भविष्य की दिशा को उजागर करती है। आइए इसे आसान शब्दों में समझते हैं।
भारत की कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2025
1. कृषि क्षेत्र की कुल वृद्धि – आंकड़ों में मजबूती
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के कृषि एवं सहयोगी क्षेत्रों (जैसे पशुपालन, मछली पालन, वानिकी आदि) की कुल मूल्य वृद्धि (Gross Value Added) पिछले 12 सालों में लगभग 225% बढ़ी है।
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2011-12 में कुल उत्पादन मूल्य ₹1,502 हजार करोड़ था।
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2023-24 तक यह बढ़कर ₹4,878 हजार करोड़ हो गया।
अगर हम स्थिर मूल्यों (यानि महंगाई को घटाकर) के आधार पर देखें तो यह वृद्धि लगभग 54.6% है।
इसका मतलब है कि भारत की खेती का दायरा बढ़ा है, किसानों का उत्पादन ज्यादा हुआ है, और बाजार में कृषि की हिस्सेदारी मजबूत बनी है।
साल 2024-25 में कृषि क्षेत्र का योगदान देश की अर्थव्यवस्था (GDP) में लगभग 18% के आसपास दर्ज किया गया है — जो स्थिरता का संकेत है।
2. फसलों का योगदान – धान और गेहूँ अब भी शीर्ष पर
कृषि क्षेत्र में सबसे बड़ा हिस्सा फसलों का है। रिपोर्ट के अनुसार,
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कुल कृषि उत्पादन मूल्य (GVO) में फसलों का हिस्सा 54% से अधिक है।
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सिर्फ धान (Paddy) और गेहूँ (Wheat) मिलकर इस समूह के लगभग 85% मूल्य का योगदान देते हैं।
इसका अर्थ है कि भारत का खाद्य-सुरक्षा ढाँचा अब भी मुख्य रूप से अनाजों पर निर्भर है।
हालांकि, रिपोर्ट में यह भी दिखाया गया है कि किसानों ने धीरे-धीरे फल, सब्ज़ी और मसालों की ओर भी रुख किया है — जिससे खेती में विविधता बढ़ रही है।
3. फल-सब्जी उत्पादन – नई दिशा में बढ़ता रुझान
कृषि में अब सिर्फ अनाज ही नहीं, बल्कि बागवानी (horticulture) भी बड़ा हिस्सा बन चुकी है।
2023-24 के आंकड़े बताते हैं कि:
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फल-सब्जियों का हिस्सा अनाज के करीब पहुँच गया है।
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केला (Banana) और आम (Mango) जैसी फसलें देश के कुल फल उत्पादन में शीर्ष पर हैं।
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केले का उत्पादन मूल्य लगभग ₹47 हजार करोड़ रहा,
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जबकि आम का ₹46 हजार करोड़ से थोड़ा कम।
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इससे यह स्पष्ट है कि किसान अब नकदी-फसलों और बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि इनसे बाजार में बेहतर कीमतें और निर्यात के अवसर मिल रहे हैं।
4. पशुपालन और सहायक क्षेत्र – किसान की आमदनी
खेती के साथ-साथ पशुपालन, डेयरी, पोल्ट्री, और मछली पालन ने किसानों को एक नया सहारा दिया है।
रिपोर्ट बताती है कि पिछले 12 सालों में पशुपालन से जुड़ी गतिविधियों में मूल्य-उत्पादन दोगुना हुआ है।
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दूध उत्पादन (Milk) अब भी इस क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा है।
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मांस (Meat) और अंडा (Egg) उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज हुई है।
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मछली पालन (Fisheries) और वानिकी (Forestry) में भी सकारात्मक रुझान हैं।
इससे किसानों को सालभर आमदनी का अवसर मिलता है और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था में विविधता आती है।
5. कौन से राज्य आगे हैं?
रिपोर्ट के अनुसार, कृषि उत्पादकता और उत्पादन के मामले में भारत के कुछ राज्य लगातार आगे हैं।
शीर्ष राज्य जिन्होंने 2023-24 में कृषि उत्पादन में सबसे ज्यादा योगदान दिया, वे हैं:
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)
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मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh)
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पंजाब (Punjab)
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तेलंगाना (Telangana)
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हरियाणा (Haryana)
इन पाँचों राज्यों ने मिलकर अनाज उत्पादन में कुल 53% से अधिक योगदान दिया।
वहीं, मसाले और सब्जियों के क्षेत्र में:
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मध्य प्रदेश ने 19% योगदान दिया,
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कर्नाटक और गुजरात क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे।
6. क्षेत्रीय असमानता – हर राज्य में समान प्रगति नहीं
हालांकि कुल उत्पादन बढ़ा है, पर सभी राज्यों में विकास की गति एक सी नहीं है।
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उत्तर भारत और दक्षिण भारत के कुछ राज्य तकनीकी रूप से आगे हैं, जहाँ सिंचाई, बीज और बाजार की सुविधा बेहतर है।
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वहीं पूर्वी व मध्य भारत के कई इलाकों में अब भी उत्पादकता कम है।
उदाहरण के लिए:
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पंजाब और हरियाणा में प्रति हेक्टेयर गेहूँ की उपज सबसे अधिक है,
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जबकि बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अब भी उत्पादकता राष्ट्रीय औसत से नीचे है।
इस असमानता को दूर करने के लिए नीति-निर्माताओं को क्षेत्रीय कृषि योजनाओं पर अधिक फोकस करना होगा।
7. तकनीकी बदलाव और किसानों की नई दिशा
रिपोर्ट का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि कृषि अब तकनीकी रूप से अधिक सक्षम हो रही है।
कई राज्यों में अब ड्रोन, सेंसर, सैटेलाइट डेटा, और डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग शुरू हो गया है।
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मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) योजना के कारण किसानों को मिट्टी की जानकारी मिल रही है।
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प्रेसिजन फार्मिंग (Precision Farming) से पानी और खाद का बेहतर उपयोग संभव हो रहा है।
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कृषि स्टार्टअप्स और एफपीओ (Farmer Producer Organisations) के माध्यम से किसान बाजार से सीधे जुड़ रहे हैं।
यह बदलाव भारत की कृषि को परंपरागत खेती से आधुनिक खेती की ओर ले जा रहे हैं।
8. रिपोर्ट में सामने आई प्रमुख चुनौतियाँ
रिपोर्ट सिर्फ उपलब्धियों पर नहीं, बल्कि उन चुनौतियों पर भी रोशनी डालती है जो आने वाले समय में कृषि विकास को प्रभावित कर सकती हैं।
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जलवायु परिवर्तन (Climate Change) – तापमान बढ़ने और बारिश के असंतुलन से फसल-उपज पर असर।
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सिंचाई की कमी – अब भी लगभग 40% खेती बारिश पर निर्भर है।
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मृदा उपजाऊता में गिरावट – अधिक रासायनिक उपयोग और मिट्टी का कटाव चिंता का विषय है।
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छोटे किसान और सीमित संसाधन – देश के लगभग 86% किसान छोटे हैं जिनके पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है।
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बाजार और मूल्य-अस्थिरता – उत्पादन बढ़ने के बावजूद किसानों को उचित दाम नहीं मिल पाते।
9. आगे का रास्ता – उत्पादकता से स्थिरता की ओर
रिपोर्ट का अंतिम निष्कर्ष यह संकेत देता है कि भारत ने उत्पादन के मोर्चे पर तो उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन अब समय है कि उत्पादकता और स्थिरता पर ध्यान दिया जाए।
नीति-निर्माताओं और किसानों दोनों के लिए कुछ प्रमुख सुझाव:
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फसल विविधीकरण (Crop Diversification) को बढ़ावा देना।
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सिंचाई-प्रणालियों में सुधार और सूक्ष्म-सिंचाई को प्रोत्साहन।
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मृदा स्वास्थ्य और जैविक खेती पर ज़ोर देना।
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कृषि अनुसंधान एवं तकनीक का स्थानीय स्तर पर प्रसार।
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किसानों की आय बढ़ाने के लिए मूल्य-शृंखला (Value Chain) को मजबूत करना।
निष्कर्ष
भारत की कृषि उत्पादकता रिपोर्ट 2025 यह दिखाती है कि देश ने खेती के क्षेत्र में लंबा सफर तय किया है।
एक ओर जहाँ फसलों की उपज बढ़ी है, वहीं दूसरी ओर पशुपालन, बागवानी और मत्स्य-पालन जैसे क्षेत्रों में भी तेजी से विकास हुआ है।
फिर भी, जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी और क्षेत्रीय असमानता जैसी चुनौतियाँ आगे की राह में हैं।
लेकिन अच्छी बात यह है कि भारत का किसान अब जागरूक है — वह नई तकनीक, नए बाजार और नई फसलों को अपनाने के लिए तैयार है।
अगर सरकार की योजनाएँ सही दिशा में लागू हों और किसानों को प्रशिक्षण व तकनीक मिले, तो आने वाले वर्षों में भारत की कृषि न सिर्फ आत्मनिर्भर बल्कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकती है।
लेख स्रोत
Ministry of Statistics & Programme Implementation (MoSPI), Press Information Bureau (PIB), Global Agricultural Productivity Initiative 2025, McKinsey Agriculture Report 2025.

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