राजस्थान की मिट्टी में मेहनत की खुशबू बसती है। यह वही धरती है जिसने रेत को भी सोना बनाया और जहाँ हर बूँद अमृत जैसी मानी जाती है। लेकिन अब इस धरती की सेहत पर एक अदृश्य बोझ बढ़ता जा रहा है —
Rising fertilizer costs and their impact on farmers
रासायनिक खादों का बोझ पिछले पाँच वर्षों में राजस्थान की खेती ने आधुनिकता की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया है। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से उत्पादन में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गई, परंतु इसके साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता में लगातार गिरावट आई है। 2020 में जहाँ राज्य की औसत मिट्टी का pH स्तर 7.2 था, वहीं 2025 की शुरुआत तक यह बढ़कर 8.0 तक पहुँच गया है। अर्थात् मिट्टी अब “क्षारीय” श्रेणी में प्रवेश कर चुकी है, जहाँ पोषक तत्वों का अवशोषण सीमित हो जाता है।
राजस्थान में रासायनिक खाद के बढ़ते उपयोग की सच्चाई
1. राजस्थान में कौन-कौन से उर्वरक सबसे ज़्यादा चलते हैं?
राजस्थान के कृषि विभाग के आँकड़ों के अनुसार, 2024 तक राज्य में रासायनिक उर्वरक का कुल उपयोग 23.6 लाख टन तक पहुँच गया है।
उर्वरक
रासायनिक नाम
उपयोग (%)
मुख्य उद्देश्य
यूरिया
46% Nitrogen
60%
पत्तियों की बढ़वार और हरियाली
डीएपी
Diammonium Phosphate
25%
जड़ विकास और फूल-फल वृद्धि
एनपीके
मिश्रित उर्वरक
10%
संतुलित पोषण
एमओपी
Muriate of Potash
5%
रोग प्रतिरोधक क्षमता
सबसे ज़्यादा उपयोग श्रीगंगानगर, कोटा, नागौर, और हनुमानगढ़ जिलों में होता है — जहाँ गेहूं, सरसों, कपास और चना जैसी फसलें उगाई जाती हैं।
2. राजस्थान जिलावार रासायनिक उर्वरक उपयोग (2024–25 अनुमानित)
ज़िला
प्रमुख फसलें
सालाना रासायनिक उपयोग (टन में)
प्रमुख उर्वरक प्रकार
पिछले वर्ष से वृद्धि (%)
श्रीगंगानगर
गेहूं, कपास
2,15,000
यूरिया, DAP
+9.5%
कोटा
धान, गेहूं, सोयाबीन
1,87,000
DAP, NPK
+8.1%
नागौर
सरसों, चना
1,63,000
यूरिया, MOP
+7.8%
हनुमानगढ़
कपास, मूंग
1,55,000
यूरिया, DAP
+6.3%
अलवर
बाजरा, गन्ना
1,38,000
DAP, NPK
+7.9%
भरतपुर
गेहूं, सरसों
1,28,000
यूरिया
+5.6%
बारां
सोयाबीन, मक्का
1,12,000
NPK, DAP
+6.2%
जयपुर
बाजरा, जौ
95,000
यूरिया
+5.0%
📘 डेटा स्रोत: राजस्थान कृषि विभाग (Fertilizer Use Monitoring Cell, 2024) Note: यूरिया का उपयोग कुल उर्वरक खपत का लगभग 58% है, जबकि DAP का 30%।
3. राजस्थान में रासायनिक उर्वरक उपयोग — पाँच साल का सफर
राजस्थान कृषि विभाग की 2025 की प्रारंभिक रिपोर्ट बताती है कि 2020 से 2025 के बीच राज्य में रासायनिक खादों का उपयोग लगभग 34% बढ़ा है।
वर्ष
कुल उर्वरक उपयोग (लाख टन)
वृद्धि दर (%)
प्रमुख उर्वरक प्रकार
2020
18.2
—
यूरिया, DAP
2021
19.8
+8.8
यूरिया, DAP
2022
21.0
+6.0
DAP, NPK
2023
22.5
+7.1
यूरिया, NPK
2024
23.6
+4.9
यूरिया, DAP
2025 (अनुमानित)
24.4
+3.4
यूरिया, NPK
IFFCO और कृषि विभाग दोनों मानते हैं कि यूरिया अब भी राजस्थान का “मुख्य उर्वरक” है — कुल खपत का लगभग 57–58% हिस्सा अकेले यूरिया का है। बाकी में DAP, NPK और MOP शामिल हैं।
4. मिट्टी की बदलती हालत — हरियाली के पीछे की हकीकत
राजस्थान की मिट्टी का औसत pH स्तर 2020 में 7.2 था। 2025 की शुरुआत में यह बढ़कर 8.0 तक पहुँच गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार यह बदलाव संकेत देता है कि मिट्टी धीरे-धीरे क्षारीय (Alkaline) होती जा रही है।
क्षारीय मिट्टी में पोषक तत्व पौधों तक नहीं पहुँच पाते — परिणाम यह कि उर्वरक डालने पर फसल तो चमकती है, पर मिट्टी अंदर से थक जाती है।
ज़िला
pH स्तर 2020
pH स्तर 2025
परिवर्तन
स्थिति
श्रीगंगानगर
7.4
8.2
+0.8
क्षारीय
नागौर
7.5
8.4
+0.9
अधिक क्षारीय
कोटा
7.1
7.9
+0.8
हल्का क्षारीय
भरतपुर
7.0
7.5
+0.5
संतुलित
टोंक
7.2
7.9
+0.7
हल्का क्षारीय
ICAR-जोधपुर की रिपोर्ट (2024) कहती है कि राजस्थान के 72% कृषि क्षेत्र में मिट्टी अब moderately alkaline श्रेणी में आ चुकी है।
डॉ. आर.के. चौहान, कृषि विज्ञान केंद्र कोटा, कहते हैं —
“मिट्टी में जैविक कार्बन घट रहा है। पिछले पाँच सालों में इसका स्तर 0.8% से घटकर 0.6% रह गया है। यह वही घटक है जो मिट्टी को ज़िंदा रखता है।”
5. उपज बढ़ी लेकिन संतुलन बिगड़ा
2020 से 2025 के बीच गेहूं, सरसों और कपास जैसी प्रमुख फसलों की उत्पादकता में 10–15 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज हुई है। लेकिन मिट्टी की उर्वरता लगातार घट रही है।
सूचकांक
2020
2025
परिवर्तन
कुल रासायनिक उर्वरक उपयोग
18.2 लाख टन
24.4 लाख टन
+34%
औसत pH स्तर
7.2
8.0
+0.8
मिट्टी का जैविक कार्बन
0.8%
0.6%
−25%
गेहूं की उपज (क्विंटल/हे.)
34
39.5
+16%
सरसों की उपज (क्विंटल/हे.)
15
17.3
+15%
कृषि विभाग इसे “उत्पादन-केंद्रित विकास” कहता है, पर वैज्ञानिक इसे “unsustainable growth” मानते हैं — जो आने वाले वर्षों में मिट्टी की सेहत को और कमजोर कर सकता है।
6. भूजल और पर्यावरण पर असर
IFFCO और राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के संयुक्त अध्ययन (2024) के अनुसार — राज्य के कई जिलों में भूजल में nitrate का स्तर 50 mg/l से ऊपर पहुँच गया है। यह WHO द्वारा निर्धारित सुरक्षित सीमा (45 mg/l) से अधिक है।
इसका सीधा असर न केवल पीने के पानी पर बल्कि फसलों की गुणवत्ता पर भी पड़ा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि उर्वरक का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा मिट्टी में उपयोग नहीं होता, बल्कि सिंचाई के पानी से बहकर नदियों और भूजल में चला जाता है।
7. सरकार और संस्थानों के प्रयास
राजस्थान सरकार और केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने पिछले तीन वर्षों में मिट्टी स्वास्थ्य सुधार के कई कार्यक्रम शुरू किए हैं —
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
– अब तक 88 लाख किसानों को मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट जारी।
नैनो यूरिया अभियान (IFFCO)
– 500 मि.ली. की बोतल पारंपरिक 45 किलो यूरिया के बराबर प्रभावशाली सिद्ध हुई। – 19 जिलों में इसका प्रयोग तेज़ी से बढ़ा है।
Integrated Nutrient Management (INM)
– 2 लाख से अधिक किसानों को संतुलित खाद उपयोग का प्रशिक्षण दिया गया।
जैविक क्लस्टर कार्यक्रम (2023)
– टोंक, अलवर, उदयपुर और नागौर में जैविक खेती के 30 क्लस्टर विकसित किए गए।
राज्य कृषि मंत्री के अनुसार,
“लक्ष्य है कि 2027 तक रासायनिक खाद पर निर्भरता 20 प्रतिशत तक घटाई जाए।”
ICAR जोधपुर और राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय कोटा के विशेषज्ञों ने 2025 के लिए निम्न सुझाव दिए हैं:
हर फसल चक्र के बाद मिट्टी की जाँच अनिवार्य की जाए।
रासायनिक खाद की जगह 20% जैविक खाद या नैनो उर्वरक अपनाया जाए।
खेतों में ड्रिप फर्टिगेशन सिस्टम को प्रोत्साहन मिले ताकि उर्वरक बर्बादी घटे।
किसानों को “Feed the Soil, Not Just the Crop” मॉडल पर शिक्षित किया जाए।
9. मिट्टी और किसान दोनों के लिए चेतावनी
राजस्थान के किसान यह महसूस करने लगे हैं कि खेती में हरियाली तो दिख रही है, लेकिन मिट्टी के भीतर से जीवन घट रहा है।
वैज्ञानिक इसे “soil fatigue” कहते हैं — जब खेत फसल देता है, लेकिन उसकी उर्वरता धीरे-धीरे खोती जाती है।
डॉ. सीमा शर्मा (ICAR जोधपुर) कहती हैं —
“हम हर साल खेतों को खिलाते हैं, पर मिट्टी को भूखा रखते हैं।
अब वक्त है कि मिट्टी को भी पोषण दें, वरना उत्पादन स्थायी नहीं रहेगा।”
10. 2025 की शुरुआत में स्थिति
राजस्थान कृषि विभाग की ताज़ा रिपोर्ट (जनवरी 2025) के अनुसार:
रासायनिक उर्वरक उपयोग में वृद्धि दर धीमी हो रही है (अब सिर्फ़ 3.4%)
जैविक खाद की हिस्सेदारी 20% के करीब पहुँच गई है।
12 ज़िलों में नैनो यूरिया का उपयोग बढ़ा है।
6 ज़िलों में मिट्टी का pH स्थिर या घटा है — यह सुधार का संकेत है।
इसका मतलब है कि राज्य धीरे-धीरे रासायनिक निर्भरता से “संतुलित खेती” की ओर बढ़ रहा है।
निष्कर्ष — 2025 की सच्चाई
पिछले पाँच सालों ने राजस्थान की खेती को दो चेहरों में बाँट दिया है — एक वह जो उपज दिखाता है, और दूसरा वह जो मिट्टी की हालत बताता है।
2020 में जहाँ खेती मेहनत की कहानी थी, 2025 में वह रसायनों की कहानी बन गई है। अगर यही रफ़्तार जारी रही, तो आने वाले दस वर्षों में राज्य की भूमि की प्राकृतिक उर्वरता 30 प्रतिशत तक घट सकती है।
लेकिन उम्मीद भी है —
क्योंकि राजस्थान अब सुधार की राह पर है। जैविक पहलें, नैनो उर्वरक और मिट्टी स्वास्थ्य योजना के ज़रिए
राज्य फिर से “soil-resilient farming” की ओर लौट सकता है। कृषि का असली विकास तब होगा जब किसान सिर्फ़ फसल नहीं, बल्कि धरती की सेहत को भी पोषित करेगा।
स्रोत (Authentic References)
Agricultural Statistics of Rajasthan 2022-23, Directorate of Economics & Statistics, Government of Rajasthan — PDF लिंक
Fertiliser Statistics Book 2021-22, Fertiliser Association of India — PDF लिंक
Soil Health Card Scheme, Ministry of Agriculture & Farmers Welfare — PDF लिंक
Impact of Soil Health Card Scheme on Production and Soil Health in India, Department of Agriculture & Farmers Welfare — PDF लिंक
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